लुप्त हो रहे पुरातन खेती बाड़ी के संसाधन,अब सुनाई नही देती बैलों के गले के घुंघरुओं की आवाज़ें।।

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तलेगांव दशासर।।आधुनिक युग में पुरातन खेती बाड़ी के संसाधन अब लुप्त होते दिखायी दे रहे हैं जिसमे हल,बख्खर आदि की जगह ट्रक्टरों ने लेने से अब बैलों के घुंघरुओं की खनक सुनाई नही दे रहीं हैं।अब क्षेत्र में बुआई पूर्व खेती की मशागत का दौर जारी है मगर इसको ट्रक्टर से ही अधिक करते देखा जा रहा है।20/25 वर्ष पूर्व खेती की मशागत के कार्य बैलों के ज़रिए ही हुआ करते थे जिससे सुबह सवेरे गांव की गलियों में बैलों के घुँघरुओं की खनक व मजदूरों की चहल,पहल देखने मिलती थी।खेती में मशागतो के लिए बैल गाड़ियों में सवार होकर किसान व मजदूर अपने सरो पर पाणी के घड़े लेकर व खाने की सिदोरिया लेकर खेतों की ओर जाती थी मगर अब यह सब लुप्त होने से सारे कार्य मशीनी युग ने अपने गिरफ्त में ले लिया।आज के दौर में ना तो बैल गाड़िया ही घरों के सामने देखने मिलती है और न बैलों की गोठे ही दिखते है अब घरों के सामने दिखते हैं तो सिर्फ ट्रक्टर,पंजी, नागर,एक फ़ावडी आदि।आज के समय मे मशगतो से लेकर बुआई,खरपतवार,बिनाई व कटाई सब काम ट्रक्टर व आधुनिक तकनीक की ही भेंट चढ़ गये है अब न तो लकड़ी के नांगर(हल),बख्खर,ढौरे आदि लुप्त होने से ट्रक्टरों की घर घर व कर्कश आवाज़ें ही सुनने मिल रही हैं।कुल मिलाकर आज के इस आधुनिक युग व तकनीकी दौर में पूर्व की बैलों व मजदूरों के ज़रिए की जाने वाली खेती बाड़ी के लकड़ी के संसाधन अब लुप्त हो चुके है या हो रहे है जिसकी जगह मशीनीकरण ने ले ली हैं।

veer nayak

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