तलेगांव मे गणेश जी की मूर्तियों को आकार देने का काम जारी,युवा मूर्तिकार प्रवीण निले चला रहे पारंपारिक व्यवसाय। 

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तलेगांव दशासर।। सभी ओर इन दिनों गणेशजी के आगमन कि तैयारिया चल रही हैं जिसमे जिसमें कुंभार समाज द्वारा व ग्रामीण क्षेत्र में अपनी कलाकृति की जतन आज भी हो रही हैं।विशेष रूप से इस दौर मे फैंसी गणेश मूर्तियों का चलन बडा जिससे मिट्टी की मूर्तियों की मांग कम हुई हैं।मिट्टी के काम मे लागत अधिक है तथा कमाई कम है जिससे ग्रामीण इलाकों में मूर्तिकारों के सामने बड़ी दुविधाओं का पहाड़ है बावजूद इसके आज भी ग्रामीण कुंभार समाज अपनी परम्परागत मिट्टी की कलाकृति को संजोये हुये है।उसी में ग्राम के एक युवा मूर्तिकार प्रवीण निले भी अपनी पुश्तैनी मिट्टी की मूर्तियां बनाने का कार्य कर रहे हैं।अब वह आगामी दिनों मे संपन्न होने वाले गणेश उत्सवों व गणेश स्थापना के लिए मूर्ति को आकार देने का काम कर रहे है।पिछले कई वर्षो से ग्रामीण क्षेत्र के यह युवा मूर्तिकार द्वारा अपने पुरखों की इस कला को जीवित रखते हुये आकर्षण मूर्तियों का निर्माण करते आरहे है।

पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस कि मूर्तियों की जगह मिट्टी की मूर्तियों को अधिक महत्व हैं जिससे उसकि अधिक मांग को ध्यान मे रख आज भी मिट्टी कि मूर्तियों आकार देने का दिया जा रहा है।महँगाई के इस दौर मे मिट्टी की आपूर्ति करना टेडी खीर है तथा 50/60 किलो मीटर दूर जंगलों से काली मिट्टी लाना भी बड़ी कसरत से कम नहीं है जिससे इसको बनाने में सारी बातों से गुजरना पड़ता है।क्षेत्र में मिट्टी कि बनाई मिट्टी की मूर्तियों की अधिक मांग है जिससे भक्तों की मांग के अनुरूप मिट्टी की मुर्तीयो आकार दिया जा रहा है मगर हालात व महँगाई की दिक्कतें आती हैं जिसपर मात करना बड़ी चुनौती कि बात मूर्तिकार निले ने कही।उन्होंने कहा कि 20 किलो ग्राम की मिट्टी की बैग 120 रुपयों जिसे लाने में 50 किलोमीटर का सफर व श्रम तथा खर्च भी इस बिक्री भाव व खर्च के मुताबिक समाधानकारक नहीं होना भी बड़ी समस्या है होने पर उन्हीने नराज़ी व्यक्त की है।इस के बाद भी परंपरागत व्यवसाय,लगन,मेहनत व ज़िद्द के चलते वह इस चुनौती का सामना करते रहे थे।वह इस काम को श्रावण मास से ही शुरू करते है तथा मिट्टी से मूर्तियों को आकार देना शुरू करते है जैसे जैसे मूर्तिया आकार लेती है वैसे वैसे उनकी कलाकृतियों का दर्शन इन मूर्तियो से झलकता है।उनके नुसार आज के इस दौर मे कच्चे माल का जुगाड़ कर अपने कार्य को मूर्त रूप देना भी एक आव्हानात्मक काम है मगर भक्तों की मांग व पर्यावरण की दृष्टि से इस चुनौति को वह स्वीकार कर अपने पारम्परिक इस व्यवसाय को संभाले हुए हैं।कुल मिलाकर अब उनके द्वारा मिट्टी की मूर्तियों का आकार देकर उसे बनाने का काम शुरू किया है तथा गणेश जी के साथ ही अन्य मूर्तियो को भी साकार करने का काम युद्ध स्तर पर शुरू है।

veer nayak

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