जहन्नम(नर्क)की आग से बचाने वाला आखरी अशरा,दस दिन शेष बचा माहे मुबारक रमजान।।

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तलेगांव दशासर।।देखा जाए तो पूरा रमजान माह ही मुस्लिमो के लिए इनाम व सवाब(पुण्यों)से भरा महीना है जिसे तीन हिस्सों यानी अशरो(दस दस दिन) में तक़सीम किया गया है।इसमें प्रथम अशरा (दस दिन) रहमत के तथा दूसरा अशरा मग़फ़िरत ( माफ़ी) यानी बख्शीश का और अब यह अंतिम अशरा जहन्नम(नर्क)की आग से बचाव का कहलाता है।इस अशरे में 26 वे रोज़े को शबे कद्र(विशेष रात) आती हैं जिसमे सारी रात इबादत कर अपने गुनाहों की माफ़ी मांगी जाती हैं तथा इबादते की जाती है इसीलिए यह अशरा अपना आला मुकाम रखता है।रमजान माह के इस अंतिम अशरे में सभी मस्जिदों में एहतेकाफ की भी किया जाता है वही इस क्रम में रब की इताअत व इबादत का प्रायोजन किया जाता है।इस अशरे मे 26 वे रोजे को शबे कद्र मनाई जाती है जिसकी विशेषता इस रात को कुरान पूरी तरह मुकममिल जमीन पर उतरा जिसमे इबादतों व धार्मिक अनुष्ठान का बड़ा पुण्य व सवाब है।यह रात इनाम की रात है जिससे लैलतुल कद्र कहा जो हज़ार रातों से बेहतर है जो गुनाहों से तौबा कर जहन्नुम की आग से छुटकारे व बख्शीश की रात कहलाती है।विशेष रूप से अब रमजान माह का यह अंतिम पड़ाव चल रहा है जिसमे हर उम्र के महिला, पुरुष अल्लाह की रज़ा यानी खुशी व उसे मनाने हेतु रोज़े,नमाज़ व सदक़ा, जकात देने में अपना फर्ज समझते हुये उसे पूरा करने में कोई कसर नही छोड़ते।रमजान माह के पूरे रोज़े होने के बाद चांद दिखने पर ईद मनाई जायेंगी बावजूद इसके इस आखरी व अंतिम अशरे में समाजबंधुओं द्वारा रोज़ा व नमाज अदा करने के साथ ही रमजान की तैयारियों में भी व्यस्तताओं को अंजाम देते देखा जा रहा है।

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